डॉ. नेहा वेगड़ और डॉ. यशस्वी चौधरी के बीच खास बातचीत
डॉ. यशस्वी चौधरी, मथुरा की पहली ऑन्कोलॉजिस्ट हैं, जिन्होंने पिछले 8 सालों में 1000 से ज़्यादा सर्जरी की हैं। फिलहाल वे CIMS हॉस्पिटल, मथुरा में कार्यरत हैं। हाल ही में उन्होंने मिलान, इटली के नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट से एक प्रतिष्ठित फेलोशिप पूरी की है। उनके प्रेरणादायक कार्यों के लिए उन्हें दैनिक जागरण द्वारा ‘युवा नारी शक्ति‘ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
डॉ. नेहा: सबसे पहले, आपको ‘युवा नारी शक्ति’ अवॉर्ड के लिए ढेर सारी बधाइयाँ! हमें बताइए कि आपको ऑन्कोलॉजी में स्पेशलाइज़ करने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
डॉ. यशस्वी: बहुत बहुत धन्यवाद, नेहा। इसकी शुरुआत 2013 में मेरे मेडिकल ट्रेनिंग के दौरान हुई थी। मैंने देखा कि कैंसर मरीजों को इलाज की सुविधा बहुत सीमित थी। एक हफ्ते में सिर्फ एक ऑन्कोलॉजिस्ट आते थे, और एक ही दिन में 100 मरीजों को देखना पड़ता था। सर्जरी के लिए लंबी वेटिंग लिस्ट होती थी। ये तकलीफदेह सच्चाई देखकर मैंने सर्जिकल ऑन्कोलॉजी को चुना ताकि इस कमी को पूरा कर सकूं।
डॉ. नेहा: यह वाकई बहुत प्रेरणादायक है। हाल ही में हम देख रहे हैं कि कैंसर के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। इसके पीछे क्या वजह है?
डॉ. यशस्वी: बिल्कुल सही कहा आपने। WHO के मुताबिक, 2050 तक कैंसर के मामले वैश्विक स्तर पर 77% तक बढ़ सकते हैं। भारत में इसके पीछे लाइफस्टाइल में बदलाव, खराब खानपान, खाने में मिलावट (जैसे दूध और ब्रेड), हवा और पानी का प्रदूषण, पेस्टीसाइड्स का अत्यधिक इस्तेमाल, और शराब व तंबाकू की बढ़ती खपत जैसी वजहें हैं।
डॉ. नेहा: भारत को इस स्थिति में सबसे ज़्यादा जोखिम क्यों है?
डॉ. यशस्वी: इसके दो बड़े कारण हैं—पहला, ज़्यादातर मरीज बहुत देर से इलाज के लिए आते हैं। करीब 70–75% मरीजों का कैंसर तब पता चलता है जब वह एडवांस स्टेज में पहुँच चुका होता है। दूसरा, भारत में कैंसर कम उम्र में हो रहा है। जहां दुनिया में आधे से ज़्यादा मामले 65 साल के ऊपर के लोगों में देखे जाते हैं, वहीं भारत में यह 40–64 साल की उम्र के लोगों को हो रहा है।
डॉ. नेहा: यह तो वाकई चिंताजनक है। तंबाकू और शराब के अलावा और कौन से छुपे हुए कारण हैं?
डॉ. यशस्वी: हाँ, सिर्फ धूम्रपान या शराब ही नहीं, आज की दुनिया में तो जो लोग ये नहीं करते वो भी सुरक्षित नहीं हैं। आज हमारे चारों ओर ज़हर फैला है—खाने में केमिकल वाले रंग और प्रिज़र्वेटिव्स (यहाँ तक कि बच्चों के खाने में आर्टिफिशियल स्वीटनर), कृत्रिम रूप से पकाए फल, नकली पनीर (एनालॉग पनीर), पानी में माइक्रोप्लास्टिक, और प्रतिबंधित कीटनाशक जैसे DDT का खुला उपयोग। भारत में इन पर सख्त नियमों की कमी है, जिससे ये सभी कैंसरकारी चीजें हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो चुकी हैं।
डॉ. नेहा: क्या भारत की हेल्थकेयर सिस्टम इस कैंसर के बोझ को संभालने के लिए तैयार है?
डॉ. यशस्वी: कुछ प्रगति ज़रूर हुई है, लेकिन अब भी कई कमियाँ हैं—रेडिएशन यूनिट्स की कमी, स्टाफ पर ज़्यादा बोझ, और सबसे बड़ी बात, लोगों में जागरूकता की भारी कमी। कई लोग ‘कैंसर’ शब्द से डरते हैं और इसलिए टेस्ट नहीं कराते। कुछ तो बायोप्सी जैसे ज़रूरी टेस्ट से भी मना कर देते हैं और झोलाछाप से इलाज करवाने लगते हैं। इससे इलाज और ज़्यादा मुश्किल हो जाता है।
डॉ. नेहा: कैंसर स्क्रीनिंग का इसमें क्या रोल है?
डॉ. यशस्वी: स्क्रीनिंग की भूमिका बहुत बड़ी है। जापान और साउथ कोरिया जैसे देशों ने नियमित स्क्रीनिंग की मदद से कैंसर मृत्यु दर काफी हद तक घटा दी है। वहाँ बीमा के तहत ये टेस्ट कवर होते हैं। भारत में भी हमें यही करना होगा—स्क्रीनिंग से ही कैंसर की जल्दी पहचान होती है, और जल्दी पकड़ा गया कैंसर पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
डॉ. नेहा: क्या कैंसर को रोकने के लिए कोई वैक्सीन उपलब्ध है?
डॉ. यशस्वी: बिल्कुल। सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन लगभग 99% असरदार है और अब भारत में इसका देसी वर्जन ‘CERVAVAC’ सिर्फ ₹2000 में मिल रहा है (16 साल से कम उम्र की लड़कियों के लिए), जबकि बाहर से आने वाली वैक्सीन की कीमत ₹10,000 थी। इसके अलावा हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन लीवर कैंसर से बचाती है। इलाज में काम आने वाली वैक्सीन पर रिसर्च जारी है, लेकिन अभी वो महंगी और प्रयोगात्मक हैं।
डॉ. नेहा: क्या जीवनशैली में बदलाव से कैंसर को रोका जा सकता है?
डॉ. यशस्वी: हाँ, लगभग 40% कैंसर रोके जा सकते हैं अगर हम डॉक्टर्स की सलाह मानें। सुस्त जीवनशैली, प्रोसेस्ड फूड, तंबाकू/शराब जैसी लतें रिस्क बढ़ाती हैं। अमेरिकन कैंसर सोसायटी सप्ताह में 300 मिनट की फिजिकल एक्टिविटी और खाने में 2/3 भाग फल, दालें और सब्जियाँ शामिल करने की सलाह देती है। ये छोटे बदलाव आपके कैंसर के खतरे को 40% तक घटा सकते हैं।
डॉ. नेहा: और अब मुख्य सवाल—क्या नियमित हेल्थ चेक-अप से कैंसर को रोका जा सकता है?
डॉ. यशस्वी: कैंसर को रोका तो नहीं जा सकता, लेकिन समय रहते पकड़ा ज़रूर जा सकता है। जब कैंसर शुरुआती स्टेज में पकड़ में आता है, तो उसका इलाज संभव होता है। 40 साल की उम्र के बाद कुछ ज़रूरी स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना चाहिए:
- ब्रेस्ट कैंसर: महिलाओं को हर साल मेमोग्राफी करवानी चाहिए।
- ओरल कैंसर: जो पुरुष तंबाकू या गुटखा खाते हैं, उन्हें नियमित ओरल स्क्रीनिंग करवानी चाहिए।
- लंग कैंसर: स्मोकिंग हिस्ट्री के अनुसार, चेस्ट CT स्कैन करवाने की सलाह दी जा सकती है।
- प्रोस्टेट कैंसर: PSA (Prostate-Specific Antigen) टेस्ट से स्क्रीनिंग।
- सर्वाइकल कैंसर: PAP स्मीयर या HPV टेस्टिंग।
- पेट का अल्ट्रासाउंड: कोई भी गांठ या असामान्यता पकड़ने के लिए।
इनसे ज़िंदगी बचाई जा सकती है।
डॉ. नेहा: और अंत में, आप परिवारों और युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगी?
डॉ. यशस्वी: किसी भी लक्षण को नजरअंदाज़ न करें और मेडिकल सलाह लेने में देर न करें। टेस्ट कराने से कैंसर नहीं होता—वो पहले से मौजूद होता है। जल्दी पहचान और सही इलाज से कैंसर पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। खुलकर बात करें, डॉक्टर पर भरोसा रखें और अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें। आप सिर्फ खुद को नहीं, अपने पूरे परिवार को मानसिक पीड़ा से बचा रहे हैं।
